ठंड बहुत है
[ आज ठंड बहुत है ]
"सुबह जल्दी उठा देना "
( रात को रजाई में सोने के लिए लेटते हुए ) बूचे भाई ने शकील की अम्मी यानी बीवी साहिबा से कहा ।
" अच्छा ठीक है ",
" लेट जाओ "
( बिस्तर सही करते हुए ) बीवी बोली ।
और फिर सभी धीरे धीरे अपने अपने बिस्तर में जाकर सो गए
सुबह हुई तो मौसम की ठंडक और तेज हवाओं के ठंडे ठंडे झोंके से मालूम हुआ आज सर्दी बहुत है ।
सूरज जैसे मानो आज छुट्टी पर हो, धूप का नाम ओ निशान नही, दरवाजे की जरा जरा सी झिरियों से आती ठंडी ठंडी हवाएं हर काम में जैसे रुकावट डालने आ रही थी ।
चाय-नाश्ते के बाद बूचे भाई ने अपना कम्बल निकाला और चल दिए अपनी दुकान लगाने ।
बूचेे भाई ने जैसे ही दरवाजा खोला एक तेज ठंडी हवा का झोंका उन्हे अंदर तक हिला गया ।
जैसे सारे जहां को सर्दी हमारे छेत्र में ही पड़ रही हो
लेकिन बूचे भाई को दुकान पर जाना था इसीलिए
कंबल ओढ़े वह दुकान की चाबी लेकर एक पतली गली से होते हुए दुकान जा ही रहे थे
रास्ते में उन्हें मुहल्ले का एक आदमी मिला
( वह आदमी बूचे भाई से हाथ मिलाते हुए बोला )
" और कैसे हो ? ",
" कहां जा रहे हो ?, बूचेे भाई ! ,
" यही दुकान खोलने जा रहा हूं "
बूचेे भाई हाथ मिलाते हुए बोलें ।
और फिर एक हल्की सी मुस्कुराहट के साथ उस आदमी को विदाई दी और फिर चल दिए अपनी दुकान की ओर
दुकान पहुंचते ही अगल बगल के कुछ दुकान दार पहले ही आ गए थे और बाहर लकड़ियां जला ली थी
एक पड़ोसी दुकानदार पंडित जी बोले -
" आओ बूचे भाई "
" आज तो ठंड बहुत "
" छुट्टी-वूट्टी कर लेते "
बूचे भाई आए और थोड़ी देर हाथ ताप कर गर्माहट ली
और फिर दुकान के शटर का ताला खोला ।
ठंड में ठिठुरते हुए एक लड़का जलती हुई आग के पास हाथ तापने आता हुआ
" ठंड हो रही है
" ठंड हो रही है
और फिर आकर आज के पास बैठ गया
कुछ देर बाद जब आग हल्की हुए तो पंडित जी अपनी दुकान
में चले गए और बाकी कई दुकानदार भी अपनी दुकान में चले गए
कोई कंबल ओढ़े बैठा है तो कोई भारी भरकम जैकेट पहने बैठा है, कोई मोबाइल में व्यस्त हो गया, कोई चाय की चुस्कियां खींचने में व्यस्त हो चला ।
और वैसे भी आज सर्दी बहुत है तो जाहिर सी बात है ये सब तो होगा ही ।
कुछ देर बाद बूचे भाई की दुकान पर गुड्डू भाई की एंट्री हुई
आते ही बोले -
" एक सादा नमकीन का पैकेट " और
" एक मसाले वाले नमकीन का पैकेट दे दो "
" बड़े वाले देना "
गुड्डू भाई हाथो को आपस में जल्दी जल्दी रगड़ते हुए
बोलें - " कितने रुपए हुए ? "
बूचे भाई : 1120 हुए
गुड्डू भाई : ठीक है ये लीजिए ( पैसे देते हुए )
गुड्डू भाई कुछ गुनगुनाते हुए चले
" सर्दी सर्दी सर्दी " ," सर्दी सर्दी "
रास्ते में जो भीं मिलता उसकी जुबान पर बस यही होता
सर्दी सर्दी
या फिर
ठंड बहुत है
आज ठंड बहुत पड़ रही है
हवाओ की ठंड है
आज तो हिला दिया ठंड ने
कुछ देर बाद लगभग घंटे भर में मौसम में बदलाव आने लगा
कोहरे की चादर छाने लगी घना कोहरा सड़को पर बेतहाशा उड़ रहा था जिसे देख लोग अपनी अपनी अटकलें लगा रहे थे
आज क्या होकर रहेगा ।
कुछ समय बाद ठंड इतनी बड़ गई कि हर किसी की जुबान यही कह रही थी
" आज ठंड बहुत है ,आज ठंड बहुत है "
- गुड्डू मुनीरी सिकंदराबादी
- दिनांक : २२/०१/२०२४
टॉपिक: सर्दी की एक सुबह
- आज की प्रतियोगिता हेतु
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समाप्त
नंदिता राय
23-Jan-2024 10:54 PM
Nice
Reply
Madhumita
23-Jan-2024 07:21 PM
Nice
Reply
Varsha_Upadhyay
23-Jan-2024 05:27 PM
बहुत खूब
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